आत्मा का बंधक

आत्मा का बंधक

आत्मा का बंधक

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यह मानसिकबंदी है जो हमें अंदर से ही जकड़ लेता है। हम खुद को बंधा हुआरखते हैं जैसे कि एक पक्षी जो अपनीखुद की चोंच से गीत गा नहीं सकता है जो हरदूर तक देखकर खुद को एक दुसरे पक्षी में पाता है। यह अनुभवकी जंजीर ही हमें मन का गुलाम बनाती है ।

मन की कैद

चिंतन एक स्वतंत्र है जो हमें अपने विचारों को पहचानने में मदद करता है। लेकिन| परन्तु, कभी-कभी ये विचार हमारी आत्मा को बंधन करते हैं, जो हमें विकास से रोकते हैं। यह एक परस्पर विरोधी स्थिति है जो हमें अपने विचारों का नियंत्रण करना होगा।

  • सकारात्मक विचारों से अपनी आत्मा को साफ़ करें
  • अपने विचारों पर नियंत्रण रखें| खुद का मालिकाना हक़ बनाए रखें| अपनी सोच की दिशा निर्धारित करें

बुद्ध की मन पर शक्ति

बुद्ध ज्ञान/विद्या/समझ के महापुरुष थे. उन्होंने अपनी आत्मा/मन/जीवन में पूर्ण शांति/संतुलन/निष्पक्षता प्राप्त की थी और इसी ज्ञान को अन्य लोगों तक पहुंचाने का उद्देश्य/लक्ष्य/प्रयास किया. उनके अनुसार, मानव मन/हृदय/आत्मा में अनेक विचारों/भावनाओं/अनुभवों का संचय होता रहता है जो अक्सर चिंता/भय/उन्‍मत्तता का कारण बनते हैं. बुद्ध ने ध्यान/योग/तपस्या के माध्यम से मन पर नियंत्रण हासिल करने का मार्ग बताया, जिससे व्यक्ति सच्चाई/ज्ञान/सुख की ओर बढ़ सकता है.

दिल : एक महाशक्ति

मानव की बुद्धि एक बहुत ही शक्तिशाली उपकरण है ।

यह उसके भाग्य को तय कर सकता है।

जब हम इस पर विश्वास करें , तो हम खुशी पा सकते हैं ।

परंतु अगर हम मन को खो देते हैं , तो यह हमें जंजीरों में बांध सकता है ।

शिक्षा, ध्यान और सामाजिक संपर्क मन को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं ।

आत्म-शक्ति और ध्यान

पहले से ही मजबूत होने वाले मानसिक तत्वों को मज़बूत बनाना देने में ध्यान सहायक होता है।

यह निश्चय की क्षमता को बढ़ाकर, हमें अपने विचारों पर नियंत्रण रखने में मदद करता है। इस प्रकार, ध्यान से ही हम अपनी सक्रिय ऊर्जा का प्रभावी ढंग से उठा सकते हैं।

कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए ध्यान ही एक महत्वपूर्ण आधार है, जो हमें समस्याओं का सामना करते समय भी शांतिपूर्ण रहने में मदद करता है।

जागरण से छुटकारा

प्रत्येक आत्मा का लक्ष्य ही है समाधान. यह साधन जीवन की सभी अवस्थाओं से ऊपर उठने का होता है. चेतन होने से ही हम इस आत्मिक यात्रा में सफल होते हैं. more info

यह तपस्या का प्रक्रिया है, जहाँ परंपरा से हमारी छुटकारा मिलती है. अंधविश्वास के बंधनों से मुक्त होकर ही हम अपने सच्चे रूप को पा सकते हैं.

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